Verse 1पहाड़ों पे हँसते हैं मसीहा के दीवाने
पहाड़ों से कहते हैं मसीहा के परवाने
यीशु नाम में उखड़ो कलाम से उखड़ो
बीमारी के, लाचारी के, नादारी के पहाड़ों
उखड़ों, उखड़ों, उखड़ों … (2)
पहाड़ों पे…
Verse 2उन चीज़ों को बुलाते हैं जो नही के जैसी हैं
ना उम्मीद की हालत में ईमान लाते हैं
ये ना ज़ोर से हैं और ना ताक़ात से हैं
पाक रूह की हुकूमत से कहते हैं
उखड़ों, उखड़ों, उखड़ों … (2)
पहाड़ों पे…
Verse 3ईमान में मजबूत हैं तब ज़िद करते हैं
खुदावंत की बातों पर शक ना करते हैं
वो लहूँ से धुले और चट्टान पे खड़े
वो लहूँ से धुले और ईमान से भरे
वो लहूँ से धुले और मस्सा से भरे
पाक रूह की हुकूमत से कहते हैं
उखड़ों, उखड़ों, उखड़ों … (2)
पहाड़ों पे…
Verse 4मजबूत हैं, कुलज़ोर हैं बे दिल ना होते हैं
खुदा के बेटे-बेटियाँ शहजोर होते हैं
वो ईमान से भरे और चट्टान पे खड़े … (2)
पाक रूह की हुकूमत से कहते हैं
उखड़ों, उखड़ों, उखड़ों … (2) पहाड़ों पे…